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तपस्या पर घोषवाक्य / नारे / स्लोगन Hindi Slogans on Jain Tapasya

August 20, 2018 Add Comment
मेरे साधर्मी भाई-बहनों को  मेरा जय जिनेंद्र। चातुर्मास चल रहा है। गुरु भगवंतों का सानिध्य में हमें मिल रहा है। सभी तरह तपस्या का एक सुंदर मेला लगा हुआ है। धर्म ध्यान, तपस्या में हम सभी जुड़े हैं। तपस्या की महिमा अपरंपार हैं, जो हमें मुक्ति के द्वार लेकर जाती है। आज मैं आप सभी के साथ तपस्या पर बनाए हुए घोषवाक्य / नारे / स्लोगन शेयर कर रही हूं।

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तपस्या पर घोषवाक्य / नारे / स्लोगन

Hindi Slogans on Jain Tapasya


◆ चातुर्मास आया है,
                        तप की बहार लाया है।

◆ तपस्वी का देखो नजारा
                       नतमस्तक है जीवन हमारा। 


◆भैया तुम आगे बढ़ो
                       तपस्या में जुड़े रहो।

◆ तपस्या से कर्म कटे
                     मुक्ति पथ पर हम आगे बढ़े।

◆ तपस्वी का देखो तेज
                    जिनशासन का चमक रहा सेज।

◆ तपस्वी ने बनाई मिसाल
                   तपस्या करते रहो हर साल।

◆ तपस्वी का देखो जीवन
                  सभी करते तपस्वी को नमन।

◆ तपस्या का रंग चढ़ा है
                 तपस्वी का जीवन महका है।


◆ हर्ष से करो सभी पुकार
                तपस्वी का जय जयकार।

◆ तपस्वी की देखो आराधना
                   जिनशासन की करो साधना। 


दोस्तों ! आशा हैं, तपस्या पर बनाए हुए यह घोषवाक्य / नारे / स्लोगन तपस्वी आप सभी को पसंद आए होंगे। तपस्या की अनुमोदना करके कर्मों की निर्जरा करते रहे। दूसरों के गुणानुवाद करते-करते हम भी उन पंक्तियों में शामिल हो सकते हैं। आप य घोषवाक्य / नारे / स्लोगन अपने साधर्मी भाई बहनों के साथ भी शेयर करें। एवं जिन शासन की प्रभावना करें।


प्रतियोगिता एवं जानकारी के लिए जैन धर्म के आगम के अनुसार प्रश्न उत्तर Some Questions Answers on Jain Religion / Dharam for Competition and Knowledge

April 18, 2018 Add Comment
जय जिनेन्द्र ! जैन धर्म सुक्ष्म एवं विशाल धर्म है। जहां पर  इस संसार एवं लोक की ऐसी कोई बात ना होगी,  जिसका वर्णन जैन धर्म में नहीं आता होगा। हमें जितने भी आगम पुण्यवाणी से मिले हैं, उसका अध्ययन करते करते  हम पूरी जिंदगी भी लगा दें तो भी कम ही है। जैन आगमों पर बनाए हुए कुछ सवाल जवाब  मैं आप सभी के साथ शेयर कर रही हूं...
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प्रतियोगिता एवं जानकारी के लिए जैन धर्म के आगम के अनुसार प्रश्न उत्तर

Some Questions Answers on Jain Religion / Dharam for Competition and Knowledge


1) मैं स्वयं कौन हूं :- प्रश्न व्याकरण सूत्र

2) मैं भगवान महावीर स्वामी के कुल से प्रख्यात हूं :-  ज्ञाता धर्म

3) मैं मेरे नाम अनुसार काम करता हूं :- व्यवहार सूत्र

4) मैं छोटा हूं ; पर काम बड़ा :- बृहत् कल्प

 
5) पांचवें गुणस्थान वाले का सम्मेलन :- उपासक दशांग सूत्र

6) मुनि जीवन की केजी की बुक हूँ :- आचारांग सूत्र
7) सभी धर्मों का आनंद मेला :- सूयडांग सूत्र

8) छ: द्रव्यों  का स्कंद नहीं :- दशाश्रुत स्कंध

9) संपूर्ण शास्त्र मेरे नाम से भरा पड़ा हैं :-  रायप्पसेनी

10) गौतम के सवाल, भगवान का जवाब :- भगवती सूत्र

11) मैं धन्ना और शालिभद्र को अपने घर ले आया :- अनुत्तरोववाई सूत्र

12) लड़के का नाम धारी, मेरा काम भारी :- निशीथ सूत्र

13) अंको का खजाना केलकुलेटर :- समवायांग सूत्र

14) कोर्ट के कानून मेरे पास है :- सुख विपाक सूत्र
15) मेरे क्लास में चरम शरीरी जीव है :- अंतगडदशांग सूत्र

16) भगवान महावीर स्वामी की अंतिम शिक्षा :- उत्तराध्ययन सूत्र

17) मैं ज्ञान के साथ आनंद बुद्धि प्रदान करता हूं :- नंदी सूत्र

18) हम दोनों का फूल जैसा ही हेडिंग है :-  पूफ्फचूलियां

19) साधु के अभिग्रह एवं लब्धीयों का खजाना हूं :- उववाई सूत्र

20) मेरे बाद प्रभात और संध्या के बाद मैं :- आवश्यक सूत्र

21) मैं सृष्टि दर्शन करवाता हूं :- पण्णवणा सूत्र

22) एक परिवार का इतिहास हूँ :- निरवलिया सूत्र

23) मैं जैन जगत का तिथि का तोरण हूं :- चंद्रपज्ञप्ति

24) ऋतु परिवर्तन के परिवर्तन की जवाबदारी मेरी है :- सूर्यप्रज्ञप्ति

25) दिक्षार्थी का पासपोर्ट हूँ :- दशवैकालिक

26) 31 सूत्र का दरवाजा खोलता हूं :- अनुयोगव्दार सूत्र

27) जैन जगत का आध्यात्मिक भूगोल हूं :- जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति


मेरे साधर्मी भाई बहनों... जैन आगमों पर पढ़े हुए कुछ सवाल जवाब मैंने आपके साथ शेयर किए, आशा है आप सभी को यह सवाल जवाब पसंद आए होंगे। इस आर्टिकल को अपने साधर्मी भाई बहनों के साथ शेयर करके उनका ज्ञान वृद्धिगत करें।



जैन तपस्या आयंबिल ओली की जानकारी Information in Hindi About Jain Tapasya Aayambil

April 09, 2018 1 Comment
भगवान महावीर के  दरबार में स्थान मिलना हमारे अत्यंत पुण्यवानी का उदय हैं। परमपिता भगवान महावीर ने  हमारे दुखों को दूर कर  मोक्ष के अव्याबाध सुख को प्राप्त करने का मार्ग हमें बताया है। वह है, दान, शील, तप, भाव। इन्हीं में से एक है,  "तप"। तपस्या की महिमा अपरंपार है। तप जिनशासन को आलोकित कर रहा है। तप के कई प्रकार है, उन्हीं में से एक है आयंबिल ओली!

जैन तपस्या आयंबिल ओली की जानकारी

Information in Hindi About Jain Tapasya Aayambil


                 जैन धर्म में तपस्या का बहुत ही महत्व है। तपस्या से हम पूर्व में बांधे कर्मों का नाश कर सकते हैं। जैन धर्म जबरदस्त है, लेकिन यहां कोई जबरदस्ती नहीं है। हम अपनी शक्ति के अनुसार नवकारसी से लेकर मासखमन तक छोटी-मोटी तपस्या कर सकते हैं। तो चलिए जानते हैं, आयंबिल ओली के बारे में....

                 भगवान ने हमें तपस्या के कई मार्ग बताए हैं। जैसे नवकारसी, पोरसी, बियासना, एकासना, उपवास आदि। आयंबिल उन्हीं में से एक है। आयंबिल में सभी द्रव्य याने दूध, दही, घी, तेल, शक्कर आदि सभी का त्याग किया जाता है। आयंबिल में नमक का भी त्याग होता है। आयंबिल की तपस्या रसनेद्रिंय पर विजय प्राप्त करने के लिए करते हैं। अपना पेट भरने के लिए एक स्थान पर बैठकर दिन में सिर्फ एक बार लूखा-सुखा आहार करना। समभाव की साधना करना यही आयंबिल ओली का हेतू  है। लगभग चैत्र शुक्ल सप्तमी से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा तक आयंबिल ओली की जाती है। श्रीपाल-मैना ने यह तपस्या की थी और तब से यह  आयंबिल ओली प्रारंभ हुई। जहां पर हम एक दिन भी दूध, दही, घी, तेल, मीठा खाकर नहीं रह सकते, वही 9 दिन लगातार निरस आहार करने वाले धन्यवाद के पात्र हैं। हम भी आयंबिल ओली की तपस्या की श्रृंखला में जूड़कर महान कर्मों की निर्जरा करने का प्रयास करेंगे। भगवान ने इच्छा के निरोध में ही सुख कहां है और हमारा अंतिम लक्ष्य तो मोक्ष सुख को प्राप्त करना ही है।

रसनेद्रिंय पर विजय प्राप्त करने के लिए करेंगे आयंबिल ओली
अनंत कर्मों की निर्जरा होकर मिलेंगी हमें आत्मिक की झोली।

आयम्बिल  ओली की तपस्वी की अनुमोदना कर के खुद भी आयम्बिल ओली में जुड़ जाइये।  तभी हमारे कर्मो की निर्जरा होगी। आपको ये आर्टिकल अच्छा लगा होंगे तो जैन एवं जैनेत्तर लोगो को साथ शेयर करे ताकि उन्हें भी हमारे धार्मिक तपस्या के बारे में जानकारी मिले। 

 

भगवान महावीर की दीक्षा संबंधी कुछ विशेष जानकारियां Information Regarding Bhagwan Mahaveer Diksha

January 04, 2018 1 Comment
जय जिनेन्द्र! भगवान महावीर का वैराग्य अद्भुत था। एक दिन सभी ने देखा, राजमहलों में चलने वाला, वैभव में पलनेवाला,  सुकुमार राजकुमार कांटों, कंकरो भरी राहों पर निकल पड़ा। एक महल छोड़ सारी दुनिया को महल बनाता हुआ। अपने आप को साधने के लिए, अपने आप को पाने के लिए, पूर्ण स्वतंत्र होने के लिए। भगवान महावीर तीर्थंकर थे और एक तीर्थंकर जब दीक्षा लेता है तब उसकी पुण्यवाणी कैसी होती है, उसके बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें हम जानने का प्रयास करते हैं....

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भगवान महावीर की दीक्षा संबंधी कुछ विशेष जानकारियां

Information Regarding Bhagwan Mahaveer Diksha


1) माता पिता के दिवंगत हो जाने पर अपनी गर्भ में की हुई प्रतिज्ञा समाप्त हो जाने पर भगवान ने दीक्षा लेने का निर्णय किया।

2) 1 वर्ष तक दान में प्रतिदिन 1 करोड़ आठ लाख मुद्रा एवं वर्ष में कुल 388 करोड़ 80 लाख मुद्रा का दान दिया।

3) लोकांतिक देव अपने जीताचार वश प्रत्येक तीर्थंकर को दीक्षा के लिए उत्साहित, प्रेरित करते हैं। प्रतिबोधित करने के वचन कहते हैं।

4) वैश्रमण देव धन के भंडार भरते हैं।

5) 64 इंद्र ऋध्दि सहित नगरी में आते हैं। आकाश में भूमि से कुछ ऊंचे विमान को ठहराते हैं।

6) मंडप रचना, स्नान, मालीश आदि अभिषेक क्रिया शकेन्द्र ने की।

7) त्रिपट सिंचित साधित शीतल गोशीर्ष रक्त चंदन का भगवान के शरीर पर लेप किया।

  8) एक लाख सोनिया मुद्रा के मूल्य वाले वस्त्र पहनाया। विविध अलंकारों से भगवान को विभूषित किया। वैक्रिय से इंद्र ने शिविका (पालखी) विविध कलाकृती युक्त बनाई। जिसे उठाने के लिए एक  हजार व्यक्ति खड़े रहते थे।

9) छटृ भक्त की तपस्या में भगवान विशुद्ध परिणामों से उस शिविका पर चढ़े, सिंहासन पर बैठे। शकेन्द्र, इशानेन्द्र दोनों बाजू में चामर झूला रहे थे। शिविका पहले मनुष्य ने उठाई फिर देवों ने शिविका का वहन किया। हजारों देव जुलूस में आकाश में चल रहे थे। विविध वाजिंत्रो से आकाश गुंजायमान हो रहा था। देवता भी विविध वाजिंत्र वादन और सैकड़ों नाटक दिखाते जा रहे थे।

10) नगर के बाहर उद्यान में दीक्षा स्थल था। वहां पहुंचकर भगवान ने अलंकार वस्तुओं का त्याग किया। फिर केश लोच किया। आभूषण वैश्रमन देव ने स्वच्छ वस्त्र में लिए और केशो को शकेन्द्र ने व्रजमय थाल में ग्रहण कर क्षीरोद समुद्र में संहरित कर दिए। विसर्जित कर दिए।

11) भगवान सिध्दों को नमस्कार करके संपूर्ण सावद्य योग  त्याग एवं संयम ग्रहण की प्रतिज्ञा का उच्चारण किया। उस समय सारा वातावरण और वाजिंत्रो की आवाज को शकेंद्र की आज्ञा से परिपूर्ण शांत कर दिया गया। सभी ने ध्यानपूर्वक प्रतिज्ञा के पाठ का उच्चारण शांति के साथ सुना।

12) प्रतिज्ञा उच्चारण के अंदर ही भगवान को मनपर्याय ज्ञान उत्पन्न हुआ। सभी पारिवारिक जनों एवं समस्त परिषद को विसर्जित किया। आज की भाषा में मांगलिक पाठ सुनाया।

भगवान महावीर का जीवन जब हम देखते हैं तो हमारे जीवन में नवचेतना का संचार होता हैं। भगवान महावीर का जीवन विशाल था, अद्भुत था। राजपाट, पारिवारिक सुख-सुविधा होने के बाद भी किस तरह उन्होंने इसका त्याग कर अष्ट कर्मों को खपाया। उनके जीवन से हमें असीम प्रेरणा मिलती है। आशा है, भगवान महावीर के दीक्षा संबंधी  यह शेयर की हुई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। जय जिनेन्द्र!


अवश्य पढ़े :- महावीर स्वामी के जन्म और परिवार के बारे में विशेष जानकारीयां 
                     महावीर स्वामी पर हिंदी कविता 
                     महावीर भगवान पर हिंदी स्पीच 
                      जैन संत पर हिंदी शेरो शायरी 
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भगवान महावीर के जन्म और परिवार के बारे में कुछ विशेष जानकारियां Family and Birth Information of Bhagwan Mahaveer

December 08, 2017 3 Comments
जय जिनेंद्र! प्रभु महावीर का जीवन अताह सागर के समान है। जब परमपिता भगवान महावीर का जन्म हुआ तो सारे लोक में प्रकाश का आलम सा फैल गया। नरक में भी कुछ देर के लिए अंधेरा नष्ट हो गया। प्रभु महावीर का सारा जीवन ही अनुमोदनीय, अनुकरणीय है। प्रभु महावीर के विशाल जीवन को शब्दों में पिरोना हमारे बस में नहीं है। ऐसे परमपिता भगवान महावीर की जन्म और परिवार के बारे में कुछ विशेष जानकारियां आपके साथ शेयर करना पसंद करूंगी.....

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भगवान महावीर के जन्म और परिवार के बारे में कुछ विशेष जानकारियां

Family and Birth Information of Bhagwan Mahaveer



1) महावीर भगवान पूर्व भव मे दसवे देवलोक में थे।

2) भगवान के :-

• गर्भ में आने की तिथि आषाढ़ सुदी छट्ट 
• गर्भसंहरन तिथि आसोज वदी तेरस 
• जन्म तिथि चैत्र सुदी तेरस
• दीक्षा तिथि मिगसर वदी दसम 
• केवलज्ञान तिथि वैशाख सुदी दसम
• निर्वाण तिथि कार्तिक वदी अमावस 


3) भगवान पूर्व भव से तिन ज्ञान साथ में लेकर आये थे - मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान और अवधिज्ञान।

4) चौथे आरे के पचहत्तर वर्ष और साढे आठ महीने शेष रहने पर भगवान गर्भ में आ गए थे।

5) भगवान की प्रथम माता देवानंदा ब्राह्मणी और पिता ऋषभदत्त ब्राह्मण थे।

6) भगवान के दूसरे माता-पिता (लोक प्रसिद्ध) माता त्रिशला क्षत्रियाणी और पिता सिद्धार्थ राजा थे।

7) भगवान का जन्म होने पर महोत्सव करने देवलोक के देव आये। उन्होंने अमृत की, सुगंधि द्रव्यों की, गुलाब आदि मांगलिक चूर्णों की, अचित फूलों की, स्वर्ण की, चांदी की, रत्नों की वृष्टि की।

8) भगवान महावीर के विविध नाम थे। जैसे - वर्धमान, श्रमण, महावीर, सन्मति, ज्ञातपूत्र आदि।

9) पिता के तिन नाम - सिद्धार्थ, श्रेयांस, यशस्वी।

10) माता के तिन नाम - त्रिशला, विदेहदिन्ना, प्रियकारिणी।

11) काका का नाम सुपार्श्व था।

12) बड़े भाई का नाम नंदिवर्धन था।

13) बड़ी बहन का नाम सुदर्शना था।

14)भार्या का नाम यशोदा, जो कौडिन्य गोत्र थी।

15) पुत्री के दो नाम प्रियदर्शना और अनोजा थे।

16) दोहित्री के दो नाम शेषवती, यशवति।

17) भगवान के माता पिता त्रिशला और सिद्धार्थ श्रावक धर्म की आराधना कर संलेखना संथारा में काल करके 12 वें देवलोक में देव बने। वहां से महाविदेह क्षेत्र में एक भव करके मोक्ष जाएंगे।

18) देवानंदा माता और ऋषभदत्त पिता दोनों भगवान के केवली होने के बाद दिक्षा लेकर उसी भव से मोक्ष गए। 

दोस्तों! आशा है, भगवान महावीर के जन्म और परिवार के बारे में जो कुछ विशेष जानकारियां जो गुरु भगवंतों द्वारा हमें प्राप्त हुई है, उन्हें आपके साथ शेयर करने का प्रयास किया है। यकीन है, यह जानकारियां आपको बेहद पसंद आई होगी। समय समय पर इसे पढ़कर अपनी जानकारी वृद्धिगत करें।  एवं अपने सभी साधर्मी भाई-बहनों के साथ शेयर करें। जय जिनेंद्र!


अवश्य पढ़े :-  महावीर स्वामी पर हिंदी कविता 
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