जैन तपस्या को विश्व में बहुत ऊंचा स्थान दिया जाता है। नवकारसी से लेकर मासखमन तक हम कोई भी अपनी शक्ति के अनुसार छोटी मोटी तपस्या कर सकते हैं। तप का उद्देश्य कर्मों की निर्जरा है। यहां पर हमने आपके लिए एक सुंदर नाटिका बनाई है जो एक धर्म प्रभावना का काम करेगी एवं लोगों को धर्म एवं तप करने के लिए प्रेरित करेगी। प्रस्तुत है, जैन नाटिका "तपस्या की महिमा अपरंपार"...
1)कविता
तिनों एक बार किट्टी पार्टी में मिलते हैं।
रिद्धि :- हेलो फ्रेंड्स!
प्रीति :- हाय!
कविता :- जय जिनेंद्र!
प्रीति :- लेट हो गया रिद्धि तुम्हें आने में।
रिद्धि :- हां यार मम्मीजी ने जबरदस्ती स्थानक भेज दिया। फिर क्या लेट होना ही था!
प्रीति :- ओह हमारी धर्मात्मा फ्रेंड कविता आज स्थानक नहीं गई।
कविता :- हां यार मैं आज तुम लोगों को यही कहने वाली थी की किट्टी पार्टी का समय रात में रखा करो। मेरा दोपहर का स्थानक का क्लास मिस हो जाता है।
रिद्धि और प्रीति :- ओ माय गॉड !!
रिद्धि :-इसे तो हमेशा स्थानक में ही जाने की पड़ी रहती है। लाइफ एंजॉय करना सीख। अपना तो वसूल यही है,खाओ! पियो! एंजॉय करो!!
प्रीति :- हां बिल्कुल सही कहा।
( रिद्धि और प्रीति एक दूसरे को ताली देते है)
कविता :- नहीं यार! धर्म तो जीवन में चाहिए। धर्म के बिना तो जीवन बेकार है। धर्म और कर्म यह दो चीजें ही तो हमारे संग आती है।
रिध्दि :- अब तू लेक्चर मत स्टार्ट कर।
प्रीति :- चलो अब चलते हैं, मस्त मजा आया, आज किट्टी पार्टी में! जल्द ही मिलेंगे।
रिद्धि ,कविता :- बाय-बाय !
(कुछ दिन बाद प्रिति का कॉल कविता को आता है)
प्रीति :- हेलो कविता! रिद्धि को ब्रेन ट्यूमर हो गया है वह हॉस्पिटल में एडमिट है।
कविता :- यह क्या कह रही हो तुम? अभी तो हम मिले थे, सब ठीक था। अचानक इतनी असाता वेदनीय कर्म का उदय!
रिध्दि :- आज हम उससे मिलने जाएंगे।
( रिध्दि, कविता, प्रीति तीनो बहुत अच्छे दोस्त हैं। कविता और रिद्धि, प्रीति की यह हालत देख कर रोने लगते हैं)
प्रीति :- (लेकिन प्रीति के भाव बदल गए हैं; धर्म के बोल अब जीवन में उतर गए हैं ) वह कहती हैं, दोस्तों आर्तध्यान मत करो। इस अनुभव ने मुझे नई सीख दी है। अब मुझे संसार और जीवन की वास्तविकता समझ में आ गई है। मनुष्य भव सिर्फ मौज मस्ती के लिए ही नहीं मिला है, मैंने अभी तक के समय का उपयोग नहीं किया और अब इस हालत में मैं धर्म ध्यान करने में असमर्थ हूं।
कविता :- नहीं! नहीं!! अभी भी समय गया नहीं हैं। इस दुख को भी तुम समभाव से सहन करोगी तो अनंत कर्मो की निर्जरा होगी। तुम समभाव रखकर कषायों को जीत सकती हो और कषाय; क्रोध, मान माया, लोभ को जितना ही तो महान कर्म निर्जरा है।
प्रीति :- हां मुझे अब समभाव की साधना करना है। जिंदगी का कोई भरोसा नहीं। कब क्या हो जाए? मुझे ही देखो इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी बीमारी!
कविता :- दशवैकालिक सूत्र के आठवें अध्ययन के छत्तीसवी गाथा में भगवान ने कहा है - जब तक बुढ़ापा पीड़ित न कर दें, जब तक कोई रोग हमारे शरीर को न घेर ले, जब तक इंद्रियां शिथिल न हो जाए तब तक हमें धर्म का आचरण कर लेना चाहिए।
प्रीति :- सही कहा, कविता! अब मैं चाह कर भी इतना धर्म ध्यान नहीं कर सकती। रिद्धि मेरे जैसी हालत होने के पहले ही तुम धर्म से जुड़ जाओ। धर्म का स्वाद चख लो।
रिद्धि :- हां! मैं भी अब धर्म की शरण लूंगी।
(तीनों सहेलियाँ साथ में धर्म ध्यान करने लगती हैं )
रिद्धि :- दोस्तों, इस चातुर्मास में मेरे मासखमन करने के भाव है।
कविता :- वाह! क्या बात!
प्रीति :- हां यार! तुम अभी अभी तो नवकारसी करने लगी हो और अब डायरेक्ट मासखमन करने के भाव हैं। व्हेरी गुड!
रिद्धि :- हां... सब देव, गुरु,धर्म की कृपा है। अब तो हम दोस्तों का वैसे भी एकांत कर्म निर्जरा ही लक्ष्य है ना?
प्रीति :- रिद्धि, वाह! कितने सहजता से तुमने मासखमन पूर्ण किया। धर्म की आराधना करते करते तुम तपस्या में लीन रही।
कविता :- करो तपस्या, मिटे समस्या! प्रीति इस तप की श्रृँखला में हमें भी अपनी शक्ति के अनुसार जुड़ना चाहिए।
प्रीति :- हां, मैं भी यथाशक्ति तप करूंगी। अब हमें तन मन की सुंदरता के साथ आत्मा की सुंदरता को भी निखारना है।
कविता :- तपस्या मतलब क्या? इच्छाओं का निरोध करना, इच्छाओं को रोकना। और अपनी इच्छा कम करने से ही हमें परम शांति की अनुभूति हो रही है ना?
तपस्या की महिमा अपरंपार है।
( तीनों साथ में कहती हैं)
आप इस नाटिका को प्रस्तुत करके धर्म प्रभावना कर सकते हो। जिससे सभी मे धर्म ध्यान एवं तपस्या करने की भावना जागृत होंगी। आशा है, यह नाटिका मेरे सभी सधर्मी भाई-बहनो को पसंद आएँगी....
अवश्य पढ़े :- १] जैन हिंदी नाटिका जीव की आत्मकथा
२] जैन तपस्या पर हिंदी स्पीच
३] जैन दिवाली हिंदी कविता
४] जैन स्वीटकॉर्न मिक्स वेजिटेबल सब्जी हिंदी रेसिपी
जैन तपस्या पर हिंदी नाटिका
Hindi Dramma on Jain Tapasya
इस नाटिका में 3 सहेलियां अपना किरदार निभा रही है -1)कविता
2) प्रीति
3)रिद्धि
तिनों एक बार किट्टी पार्टी में मिलते हैं।
रिद्धि :- हेलो फ्रेंड्स!
प्रीति :- हाय!
कविता :- जय जिनेंद्र!
प्रीति :- लेट हो गया रिद्धि तुम्हें आने में।
रिद्धि :- हां यार मम्मीजी ने जबरदस्ती स्थानक भेज दिया। फिर क्या लेट होना ही था!
प्रीति :- ओह हमारी धर्मात्मा फ्रेंड कविता आज स्थानक नहीं गई।
कविता :- हां यार मैं आज तुम लोगों को यही कहने वाली थी की किट्टी पार्टी का समय रात में रखा करो। मेरा दोपहर का स्थानक का क्लास मिस हो जाता है।
रिद्धि और प्रीति :- ओ माय गॉड !!
रिद्धि :-इसे तो हमेशा स्थानक में ही जाने की पड़ी रहती है। लाइफ एंजॉय करना सीख। अपना तो वसूल यही है,खाओ! पियो! एंजॉय करो!!
प्रीति :- हां बिल्कुल सही कहा।
( रिद्धि और प्रीति एक दूसरे को ताली देते है)
कविता :- नहीं यार! धर्म तो जीवन में चाहिए। धर्म के बिना तो जीवन बेकार है। धर्म और कर्म यह दो चीजें ही तो हमारे संग आती है।
रिध्दि :- अब तू लेक्चर मत स्टार्ट कर।
प्रीति :- चलो अब चलते हैं, मस्त मजा आया, आज किट्टी पार्टी में! जल्द ही मिलेंगे।
रिद्धि ,कविता :- बाय-बाय !
(कुछ दिन बाद प्रिति का कॉल कविता को आता है)
प्रीति :- हेलो कविता! रिद्धि को ब्रेन ट्यूमर हो गया है वह हॉस्पिटल में एडमिट है।
कविता :- यह क्या कह रही हो तुम? अभी तो हम मिले थे, सब ठीक था। अचानक इतनी असाता वेदनीय कर्म का उदय!
रिध्दि :- आज हम उससे मिलने जाएंगे।
( रिध्दि, कविता, प्रीति तीनो बहुत अच्छे दोस्त हैं। कविता और रिद्धि, प्रीति की यह हालत देख कर रोने लगते हैं)
प्रीति :- (लेकिन प्रीति के भाव बदल गए हैं; धर्म के बोल अब जीवन में उतर गए हैं ) वह कहती हैं, दोस्तों आर्तध्यान मत करो। इस अनुभव ने मुझे नई सीख दी है। अब मुझे संसार और जीवन की वास्तविकता समझ में आ गई है। मनुष्य भव सिर्फ मौज मस्ती के लिए ही नहीं मिला है, मैंने अभी तक के समय का उपयोग नहीं किया और अब इस हालत में मैं धर्म ध्यान करने में असमर्थ हूं।
कविता :- नहीं! नहीं!! अभी भी समय गया नहीं हैं। इस दुख को भी तुम समभाव से सहन करोगी तो अनंत कर्मो की निर्जरा होगी। तुम समभाव रखकर कषायों को जीत सकती हो और कषाय; क्रोध, मान माया, लोभ को जितना ही तो महान कर्म निर्जरा है।
प्रीति :- हां मुझे अब समभाव की साधना करना है। जिंदगी का कोई भरोसा नहीं। कब क्या हो जाए? मुझे ही देखो इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी बीमारी!
कविता :- दशवैकालिक सूत्र के आठवें अध्ययन के छत्तीसवी गाथा में भगवान ने कहा है - जब तक बुढ़ापा पीड़ित न कर दें, जब तक कोई रोग हमारे शरीर को न घेर ले, जब तक इंद्रियां शिथिल न हो जाए तब तक हमें धर्म का आचरण कर लेना चाहिए।
प्रीति :- सही कहा, कविता! अब मैं चाह कर भी इतना धर्म ध्यान नहीं कर सकती। रिद्धि मेरे जैसी हालत होने के पहले ही तुम धर्म से जुड़ जाओ। धर्म का स्वाद चख लो।
रिद्धि :- हां! मैं भी अब धर्म की शरण लूंगी।
(तीनों सहेलियाँ साथ में धर्म ध्यान करने लगती हैं )
रिद्धि :- दोस्तों, इस चातुर्मास में मेरे मासखमन करने के भाव है।
कविता :- वाह! क्या बात!
प्रीति :- हां यार! तुम अभी अभी तो नवकारसी करने लगी हो और अब डायरेक्ट मासखमन करने के भाव हैं। व्हेरी गुड!
रिद्धि :- हां... सब देव, गुरु,धर्म की कृपा है। अब तो हम दोस्तों का वैसे भी एकांत कर्म निर्जरा ही लक्ष्य है ना?
प्रीति :- रिद्धि, वाह! कितने सहजता से तुमने मासखमन पूर्ण किया। धर्म की आराधना करते करते तुम तपस्या में लीन रही।
कविता :- करो तपस्या, मिटे समस्या! प्रीति इस तप की श्रृँखला में हमें भी अपनी शक्ति के अनुसार जुड़ना चाहिए।
प्रीति :- हां, मैं भी यथाशक्ति तप करूंगी। अब हमें तन मन की सुंदरता के साथ आत्मा की सुंदरता को भी निखारना है।
कविता :- तपस्या मतलब क्या? इच्छाओं का निरोध करना, इच्छाओं को रोकना। और अपनी इच्छा कम करने से ही हमें परम शांति की अनुभूति हो रही है ना?
तपस्या की महिमा अपरंपार है।
( तीनों साथ में कहती हैं)
तप जीवन का श्रोत है,
तप जीवन जलती ज्योत है
तप से होती है कर्म निर्जरा
तप मोक्ष मार्ग का स्तोत्र है।
आप इस नाटिका को प्रस्तुत करके धर्म प्रभावना कर सकते हो। जिससे सभी मे धर्म ध्यान एवं तपस्या करने की भावना जागृत होंगी। आशा है, यह नाटिका मेरे सभी सधर्मी भाई-बहनो को पसंद आएँगी....
अवश्य पढ़े :- १] जैन हिंदी नाटिका जीव की आत्मकथा
२] जैन तपस्या पर हिंदी स्पीच
३] जैन दिवाली हिंदी कविता
४] जैन स्वीटकॉर्न मिक्स वेजिटेबल सब्जी हिंदी रेसिपी
आपके इस तपस्या पर बनाई हिंदी नाटिका को सब ने सराहा।
ReplyDeleteकाफी सुंदर कहानी है।
ReplyDeleteDhanywad sa
DeleteBohot khub
ReplyDeleteNice ... Drama or koi ho thi daliye na
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