भगवान महावीर के दरबार में स्थान मिलना हमारे अत्यंत पुण्यवानी का उदय
हैं। परमपिता भगवान महावीर ने हमारे दुखों को दूर कर मोक्ष के अव्याबाध
सुख को प्राप्त करने का मार्ग हमें बताया है। वह है, दान, शील, तप, भाव।
इन्हीं में से एक है, "तप"। तपस्या की महिमा अपरंपार है। तप जिनशासन को
आलोकित कर रहा है। तप के कई प्रकार है, उन्हीं में से एक है आयंबिल ओली!
जैन धर्म में तपस्या का बहुत ही महत्व है। तपस्या से हम पूर्व में बांधे कर्मों का नाश कर सकते हैं। जैन धर्म जबरदस्त है, लेकिन यहां कोई जबरदस्ती नहीं है। हम अपनी शक्ति के अनुसार नवकारसी से लेकर मासखमन तक छोटी-मोटी तपस्या कर सकते हैं। तो चलिए जानते हैं, आयंबिल ओली के बारे में....
भगवान ने हमें तपस्या के कई मार्ग बताए हैं। जैसे नवकारसी, पोरसी, बियासना, एकासना, उपवास आदि। आयंबिल उन्हीं में से एक है। आयंबिल में सभी द्रव्य याने दूध, दही, घी, तेल, शक्कर आदि सभी का त्याग किया जाता है। आयंबिल में नमक का भी त्याग होता है। आयंबिल की तपस्या रसनेद्रिंय पर विजय प्राप्त करने के लिए करते हैं। अपना पेट भरने के लिए एक स्थान पर बैठकर दिन में सिर्फ एक बार लूखा-सुखा आहार करना। समभाव की साधना करना यही आयंबिल ओली का हेतू है। लगभग चैत्र शुक्ल सप्तमी से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा तक आयंबिल ओली की जाती है। श्रीपाल-मैना ने यह तपस्या की थी और तब से यह आयंबिल ओली प्रारंभ हुई। जहां पर हम एक दिन भी दूध, दही, घी, तेल, मीठा खाकर नहीं रह सकते, वही 9 दिन लगातार निरस आहार करने वाले धन्यवाद के पात्र हैं। हम भी आयंबिल ओली की तपस्या की श्रृंखला में जूड़कर महान कर्मों की निर्जरा करने का प्रयास करेंगे। भगवान ने इच्छा के निरोध में ही सुख कहां है और हमारा अंतिम लक्ष्य तो मोक्ष सुख को प्राप्त करना ही है।
जैन तपस्या आयंबिल ओली की जानकारी
Information in Hindi About Jain Tapasya Aayambil
जैन धर्म में तपस्या का बहुत ही महत्व है। तपस्या से हम पूर्व में बांधे कर्मों का नाश कर सकते हैं। जैन धर्म जबरदस्त है, लेकिन यहां कोई जबरदस्ती नहीं है। हम अपनी शक्ति के अनुसार नवकारसी से लेकर मासखमन तक छोटी-मोटी तपस्या कर सकते हैं। तो चलिए जानते हैं, आयंबिल ओली के बारे में....
भगवान ने हमें तपस्या के कई मार्ग बताए हैं। जैसे नवकारसी, पोरसी, बियासना, एकासना, उपवास आदि। आयंबिल उन्हीं में से एक है। आयंबिल में सभी द्रव्य याने दूध, दही, घी, तेल, शक्कर आदि सभी का त्याग किया जाता है। आयंबिल में नमक का भी त्याग होता है। आयंबिल की तपस्या रसनेद्रिंय पर विजय प्राप्त करने के लिए करते हैं। अपना पेट भरने के लिए एक स्थान पर बैठकर दिन में सिर्फ एक बार लूखा-सुखा आहार करना। समभाव की साधना करना यही आयंबिल ओली का हेतू है। लगभग चैत्र शुक्ल सप्तमी से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा तक आयंबिल ओली की जाती है। श्रीपाल-मैना ने यह तपस्या की थी और तब से यह आयंबिल ओली प्रारंभ हुई। जहां पर हम एक दिन भी दूध, दही, घी, तेल, मीठा खाकर नहीं रह सकते, वही 9 दिन लगातार निरस आहार करने वाले धन्यवाद के पात्र हैं। हम भी आयंबिल ओली की तपस्या की श्रृंखला में जूड़कर महान कर्मों की निर्जरा करने का प्रयास करेंगे। भगवान ने इच्छा के निरोध में ही सुख कहां है और हमारा अंतिम लक्ष्य तो मोक्ष सुख को प्राप्त करना ही है।
रसनेद्रिंय पर विजय प्राप्त करने के लिए करेंगे आयंबिल ओली
अनंत कर्मों की निर्जरा होकर मिलेंगी हमें आत्मिक की झोली।
आयम्बिल ओली की तपस्वी की अनुमोदना कर के खुद भी आयम्बिल ओली में जुड़ जाइये। तभी हमारे कर्मो की निर्जरा होगी। आपको ये आर्टिकल अच्छा लगा होंगे तो जैन एवं जैनेत्तर लोगो को साथ शेयर करे ताकि उन्हें भी हमारे धार्मिक तपस्या के बारे में जानकारी मिले।
अवश्य पढ़े :- १] जैन हिंदी नाटिका 'जीव की आत्मकथा'
२]जैन तपस्या पर हिंदी नाटिका
३] बच्चों के लिए जैन हिंदी ड्रामा
४] तपस्या पर हिंदी स्पीच
२]जैन तपस्या पर हिंदी नाटिका
३] बच्चों के लिए जैन हिंदी ड्रामा
४] तपस्या पर हिंदी स्पीच
Jai jinendra 🙏
ReplyDeleteAap ke dvara Ayambil tap ki jankari mere liye bahut hi useful rhi.itni saral aur short jankari ke liye dhanyvad 🙏
Me bhi jain hu,Ayambiltap ki anumodana ke aasay se aaj ke youngsters bhi jain tap se Jude rhe issi aasay se 40 se bhi adhik Ayambil recipe ke videos meri youtube channel @PARUL'S PLATE pr uploaded hai.
Fir se dhanyvad Ayambil tap ki short and clear jankari ke liye🙏