कन्या भृणहत्या पर हिंदी स्पिच / निबंध Speech / Essay on Female Feticide

December 01, 2017
नारी की महत्त्ता को शब्दों में  बताया नहीं जाता। नारी सृष्टि की एक गौरवमयी विभूति है। नारी ने अपने इस अद्भुत गौरव को अपने त्याग से सजाया है और तप से निखारा है । नारी एक गुलशन है जिसमें प्रेम, करुणा, कोमलता, त्याग तथा सहिष्णुता के विभिन्न  फूल खिले हुए हैं। जिस नारी के बिना हमारे जीवन का निर्वाह नहीं हो सकता, ऐसे नारी का अस्तित्व ही आज धोके में है।  जी हां , हम बात कर रहे है कन्या भ्रूण हत्या की। जो आज हमारे समाज पर कलंक है। कन्या भ्रूण हत्या करते समय एक नन्हीसी कली की क्या वेदनाये होती है,  हमारे समाज में उसकी क्या स्थिति है , इसका बहोत ही सुन्दर विवरण हमने आपके लिए बनाया है। कन्या भ्रूण हत्या पर बनाया हुआ यह हिंदी निबंध को आप अपने स्पीच में भी शामिल कर।

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कन्या भृणहत्या पर हिंदी स्पिच / निबंध

Speech / Essay on Female Feticide

               स्त्री एक बेटी है,"जो माता पिता की आंखों में आंसू आए तो तड़प उठती है।" स्त्री एक बहन है, "भाई के सुंदर कलाई पर रेशम सी डोर बांधकर उसके लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं।" स्त्री एक पत्नी है,"जो पति के हर सुख दुख में उसका साथ देती है।" स्त्री एक बहु है,"जो ससुराल की दहलीज पर कोई आँच नही आने देती।" स्त्री एक माँ हैं,"जो  संस्कारों के बीज से अपने  नवपल्लवित बच्चे को सिंचित करती हैं। न जाने कितने सारे रिश्ते उसने अपने आंचल में सिमेटकर कर रखे हैं। उसके बिना हम इस सृष्टी की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। स्त्री और पुरुष एक रथ के दो पहिए हैं लेकिन आज का 21वीं सदी का युग जो अपने आप को शैक्षनीक, वैज्ञानिक, सामाजिक क्षेत्र में सर्वशक्तिमान के रूप में देख रहा है वह इस रथ को असंतुलित करने पर तुला है।

गर्भपात तुम ना कराओ भ्रूण हत्या पाप है,
      लिंग परीक्षण ना कराओ पुत्र पुत्री सौगात है
क्याँ पुत्र क्याँ पुत्री दोनों एक ही पाती हैं
    जीवन रथ के दो पहिए हैं, एक दिया और बाती है।


           हमारे शास्त्रों में लिखा है," यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता:" अर्थात जहाँ नारी का सम्मान होता है वहां देवता का विचरण होता है। हमारी संस्कृति में नारी को प्राथमिकता दी है ।हम भगवान का नाम लेते है तब देवताओं का नाम लेने से पहले देवियों का नाम लेते हैं। जैसे लक्ष्मी-नारायण, भवानी-शंकर, राधा- कृष्ण,सीता-राम आदि। हमारा शास्त्र कहता है कन्यादान के बराबर कोई पुण्य नहीं है लेकिन आज कन्यादान नहीं कन्या भ्रूण हत्या हो रही है और मैं यह भी स्पष्ट कर दूँ, कन्या दान के बराबर कोई पुण्य नहीं है तो कन्या भ्रूण हत्या के बराबर कोई पाप भी नहीं है।

          नारी ने आज किस क्षेत्र में अपनी छाप नही छोडी। भारतीय प्रशासकीय सेवा से लेकर सेना तक, शिक्षा से लेकर अंतरिक्ष तक वह अपना और देश का नाम रोशन कर रही है। यहां तक कि पुरुष प्रधान क्षेत्र जैसे कि रेल्वे चालक,बस चालक, ऑटो चालक में भी वह अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। फिर भी कुछ विपरित सोच उसके अस्तित्व को ही नष्ट कर रही हैं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई,इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा, प्रतिभा पाटिल, बबीता फोगट आदि कई नारियों के नाम हम गर्व से लेते हैं। चारों तरफ अगर हमारी नजर घुमाएं तो लड़कियों के दमकते हुए चेहरे दिखाई देते हैं कोई भी विभाग लड़कियों से खाली नहीं है। शैक्षनिक क्षेत्र में आगे, वैज्ञानिक क्षेत्र में आगे और तो और माता-पिता की सेवा करने में भी आगे। तो आखिर क्यों उस सुंदर बहादुर फुल को खिलने से पहले ही मुरझाने का घिनौना काम किया जा रहा है।

माँ क्याँ सुन रही हो मेरी खामोश चीख
          मांग रही हूं मैं तुमसे दया की भीख
मत चढ़ाओ मुझ नन्ही सी को शूली पर
      दया दिखाओ इस चरण धुली पर
विज्ञान की सूक्ष्म आंखें मुझे देख लेंगी
       जन्म लेने से पहले ही बाहर फेंक देगी
मां रो रो कर मेरी आंखें हो गई हैं सागर सी सजल   
       क्याँ सूख गया है मां तेरी ममता का आंचल
 किससे कहूं मैं अपनी दर्द भरी कहानी
     यह कातिल डॉक्टर खत्म कर देंगे मेरी जिंदगानी।

             जी हां.. सही पहचाना... यह हैं, उस मासूम की चीख जिसे खिलने से पहले ही खत्म करने का घिनौना काम किया जा रहा है । जो तड़प तड़प कर सब को पुकार रही हैं क्योंकि वह भी यह खूबसूरत जिंदगी जीना चाहती हैं पर अफसोस....

              नवरात्रि में कन्या पूजन किया जाता है।  कन्या को देवी का रूप मानते हैं। दूसरी और उस देवी का गला घोंट कर मार रहे हैं। यह तो अधर्म है। कोई भी धर्म हमें इस पाप की इजाजत नहीं देता। एक और तो कन्या पूजन कर उसके पैर छुए जाते हैं और दूसरे उसका गला घोटकर मार भी देते हैं।

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           ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक परिषद के अध्यक्ष पीटर हायर कहते हैं कि 12 सप्ताह के भ्रृण को संगीत को पहचानने में और समझने में सक्षम हो जाता हैं। वह पेट में रहकर प्रतिक्रिया भी व्यक्त करता है।

                विज्ञान ने यह निर्विवाद सिद्ध कर दिया है कि जब मां को गर्भवती होने का आभास होता है तब तक उसके कोख में पल रहे बच्चे का दिल की धड़कने लगता है फिर भी एक निरपराध गर्भस्थ शिशु को चाकू से काट काट कर उसके मांस और खून को नालियों में बहा देना कौन सी समझदारी है। यह माँ कि कैसी मूर्खता है कि गर्भपात करवा के वह अपना  बच्चा तो खो ही देती हैं लेकिन अपने शरीर को रोगों का म्यूजियम बना देती है ।
            
गर्भपात से मां को भी खतरा:
                    गर्भपात करने से निर्दोष शिशु की निर्मम हत्या तो होती है वही मां को भी स्वास्थ्य संबंधी कई जटिलताओं का खतरा हो जाता है। कई प्रसंगों पर तो जानलेवा भी हो सकता है।
            
                    इसकी कुछ तत्कालीन जटिलतायें इस प्रकार है -

1)अत्यधिक रक्तश्राव का होना।
2) गर्भाशय में घाव होना।
3) रोग संक्रमण होना।
4) गर्भाशय में छिद्र होना।
5) आतडियो में छिद्र होना।

                   दिघकालीन जटिलतायें इस प्रकार है:

1) निगेटिव रक्त वाली स्त्रियों  को भविष्य में  बच्चा पैदा होने की आशंका कम हो होती है।
2) विकृत गर्भधारण होना।
3) बार बार गर्भपात होना।
4) समय से पूर्व बच्चे का जन्म होना।
5) कम वजन के शिशु का जन्म होना।
6) सदा सदा के लिए पुनः गर्भधारण करने की क्षमता को खो देना।

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             कहते हैं कि स्वयं भगवान के लिए  सभी जगह जाना संभव नहीं था इसलिए उसने मां की रचना की यही तो कारण है कि पित्रृत्व तो भी कई बार विवादास्पद बना है लेकिन मातृत्व कभी भी संदिग्ध नहीं बना। किंतु आज परिस्थितियां बदल गई है, वैज्ञानिक विकास के दुरुपयोग ने मातृत्व को प्रश्न के घेरे में खड़ा कर दिया है।

             मातृत्व नारी का श्रेष्ठतम रूप है। जो नारी अपने गुणों एवं कर्तुत्व से महान समझी जाती थी, जिस नारी के गुणों का बखान करते करते कवी, साहित्यकार नहीं थकते थे, जिसे एक नहीं दो दो मात्राएं नर से भारी नारी कहां जाता था अर्थात नारी पुरुष से भारी मानी जाती थी। आज उसी नारी की श्रेष्ठता संदिग्ध है?

            एक समय ऐसा भी था  कि अपने बालक को जीवित रखने के लिए माता  भगवान बुद्ध के पास पहुंची। उसके समाधान में भगवान बुद्ध ने कहा कि जिस घर में मौत ना हुई हो उस घर के चावल के दाने लेकर आओ। पर उस मां को ऐसा कोई घर ना मिला जिस घर में कभी मौत ना हुई हो। दाने नहीं मिलने पर वह हताश हो जाती है और सोचने लगती है कि मैं अपने बेटे के बिना जिंदा तो नहीं रह सकती, दूसरे ही पल माता अपने प्राण त्याग देती है । वह एक ऐसी माता थी!

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           नारी शक्ति को उजागर करने के लिए कई  महापुरुषों ने, नेताओं ने अपने विचार हमारे समक्ष रखे हैं  जैसे-

◆ महर्षि रमण के शब्दों में नारी पति के लिए चारित्र, संतान के लिए ममता, समाज के लिए शील,  विश्व के लिए दया, प्राणियों के लिए करुणा सजानेवाली महाप्रवृत्ति है।

◆ स्वामी विवेकानंद ने अपनी पहली अमेरिका यात्रा के दौरान वहाँ से कोलकाता के अपने गुरू भाइयों को पत्र लिखा था, और उसमें कहाँ था, इस देश को अगले 40-50 वर्षों में ही विश्व का सिरमौर देश बनने से कोई नहीं रोक सकता। क्योंकि इस देश ने अपने नारी जाती को हर क्षेत्र में समान अधिकार दिए हैं, बराबरी के अवसर दे रखे हैं, पूरे सम्मान के साथ। आज सर्वशक्तिमान बना अमेरिका स्वामी जी के उस भविष्यवाणी को साकार कर चुका है। किसके बल पर अपनी नारी शक्ति के ही बल पर!

◆ स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा था, अगर हमें लोगों को जागृत करना है तो महिलाओं को जागृत करना पड़ेगा। अगर वे एक पर जागृत हो गई तो परिवार जागृत होगा समाज जागृत होगा और देश विकास के उन्मुख बनेगा।

◆ महात्मा गांधी ने नारी को शील एवं समस्त सद्गुणों की जननी कहा है।

                      भारत धर्म प्रधान देश है। जहां सदाचार की गंगा बहती है। जहां रहते हैं सत्य और सादगी में जीने वाले लोग,  अंधकार से प्रकाश में जीने वाले लोग, अहिंसा के प्रति आस्था रखने वाले लोग, ऐसे लोगों के बीच कैसे पनब  जाती है, हिंसा और बर्बरता! कहां खो गई हैं वह हमारी शांतं तुष्ठं पवित्रं तत्वत्: की संस्कृति? अब तक भारत गरीबी, भ्रष्टाचार, भुखमरी, बेरोजगारी, हिंसा, आतंकवाद जैसी समस्याओं से झुलस रहा था, इनसे निजात पाते की उसके पहले सफेद चादर पर और एक काला धब्बा लग गया ? धब्बे पर धब्बे लगते जा रहे हैं लेकिन कोई आवाज नहीं। क्या ऐसे में हम अपने समाज के अस्तित्व को बचा पाएंगे?

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                        भ्रूण हत्या पाप है शास्त्रों में भी, समाज में भी। कानून की दृष्टि में भी यह दंडनीय अपराध है। लेकिन कुसंस्कार ग्रस्त हमारे लोभी और ढोंगी समाज में यह पाप धडल्ले से चल रहा है। कहने को हमारा देश महावीर, गौतम और गांधी का देश है। जीवित प्राणी चाहे वह भ्रृण हो या बड़ा उसकी हिंसा करने वाला पापी नहीं, महा पापी होता है। आधुनिकता की अंधी सोच, दहेज जैसी कुप्रथा और चंद नोटों के लालच के पहाड़ के नीचे दबकर पहले अल्ट्रा सोनोग्राफी से लिंग परीक्षण और गर्भ में लड़की के होने की भनक लगते ही उस  निरपराध बेकसूर को डॉक्टरों के सहयोग से रासायनिक प्रक्रिया से उस भ्रृण के टुकड़े-टुकड़े कर जन्म से पहले ही मार डालना, हद कर दी! शर्मसार हो गई मानवता! तार तार हो गई भारतीय संस्कृति!

                        कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए कई सरकारी योजनाएं अमल में लाई गई है किंतु वह पर्याप्त नहीं है। इसमें समाज की भागीदारी भी जरूरी है आज हमारे देश में 1000 पुरुषों में नारी की संख्या मात्र 933 की है। जबकि विकसित देश जापान में 1041, अमेरिका में 1029, रशिया में 1140, बांग्लादेश में 953, चीन में 944 तो पाकिस्तान में 938.... मतलब हमारा देश भ्रृण हत्या मे दुनिया में सबसे अव्वल है।

                          एक फिल्म है मातृभूमि। यह एक ऐसी फिल्म है जिसमें भारत के एक ऐसे गांव का वर्णन है, जहां लड़की पैदा होते ही उसकी दूध पीती कर दी जाती हैं। यानी दूध से भरी बाल्टी में उसे दबाकर दम घुट कर मार दिया जाता है। उस गांव के तमाम लड़के कुंवारे हैं। क्योंकि लड़की हो तो शादी करें। एक लड़की जैसे तैसे चार भाइयों के परिवार को मिलती है। चारों भाइयों के संग उसके फेरे होते हैं। उनका अपनी पत्नी के साथ कोई भावनात्मक रिश्ता है और ना कोई प्रेम का रिश्ता है। अपनी बारी आने पर हर भाई उसके साथ मात्र संभोग के लिए रात गुजारता है। चारों भाइयों की शारीरिक तृप्ति देख विदूर ससुर की भी कामवासना जाग जाती है और वह अपना एकाकीपन और शारीरिक तृप्ति को अपनी बहू के शरीर से तृप्त करता है। लड़की अपने चारों पति और ससुर की हवस शांत करते-करते जिंदा लाश बन जाती है।

                        यह कहानी मात्र एक गांव की नहीं है, ऐसे कई गाँव एवं शहर है, जहां लड़कियों की संख्या बहुत ही कम हो गई है। हरियाणा में एक गांव है, "बामला" । जहां 70% युवा कुंवारे हैं। गांव में और गांव के आसपास के इलाकों में उनके लिए शादी योग्य लड़कियां नहीं है। तमाम घरों में बस लड़के ही लड़के हैं।

                        21वीं सदी की ओर कदम बढ़ाते हुए अब वक्त आ गया है कि समाज के लिए बनाए गए अहितकर नियमों का पुनरावलोकन पर किया जाए और समय की मांग के अनुरूप उनमें सकारात्मक परिवर्तन लाया जाए। अब तक हम में से सभी ने इन रूढ़ियों के दुष्परिणाम व्यक्तिगत तौर पर झेले हैं। विशेषताः नारी समाज ने शारीरिक एवं मानसिक दोनों स्तरों पर अपार कष्ट और अपमान सहे हैं। यही रवैया रहा तो स्त्री पुरुष संख्या के अनुपात में विषमता आ जाएगी। इससे सामाजिक व्यवस्था हिल जायेगी।

                      अगर सृष्टि का अस्तित्व सुरक्षित रखना है, तो कन्या भ्रूण की सुरक्षा अत्यावश्यक है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अहम भूमिका निभाने वाली कन्या को जन्म से पहले ही समाप्त कर देना घोर अपराध है। महापाप है और मानवता के माथे पर कलंक है। कन्या भ्रूण की हत्या के लिए कौन जिम्मेदार है? समाज की बदलती हुई स्थितियां, पारिवारिक दबाव व नारी की अपनी मजबूरियां, यह सभी इस अमानवीय कृत्य को प्रोत्साहन दे रहे हैं। वस्तुतः कन्या भ्रूण की सुरक्षा वर्तमान युग की गंभीर चुनौती है।

                    आज भी कुछ निर्णायक कदमों के साथ आगे बढ़ना होगा। नारी को स्वयं अपनी अस्मिता का एहसास करना होगा। मां का रूप सुरक्षित रखते हुए हर परिस्थिति को सहन करके इस घिनौने कृत्य से दूर हटना है। आज यही अपेक्षा है कि प्रत्येक महिला स्वयं संकल्पबद्ध होकर, एक सशक्त वातावरण का निर्माण करें। तभी देश में बिगड़ते लिंगानुपात को रोका जा सकता है। नारी जीवन की शक्ति है, मातृत्व पर गहराते इस संकट से उबरना है। मातृत्व के गौरव की रक्षा में ही हम सबकी सुरक्षा है।
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3 comments

  1. Very useful and detail information of hindi essay on kanya bhrun hatya

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  2. Bhut achcha article likha hai, shbdo ka chayan ,udaharn,aakre sb bhut sateek hai.....kaash ye baate sb k Dil Mai uter jaye

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