भगवान महावीर की दीक्षा संबंधी कुछ विशेष जानकारियां Information Regarding Bhagwan Mahaveer Diksha

January 04, 2018
जय जिनेन्द्र! भगवान महावीर का वैराग्य अद्भुत था। एक दिन सभी ने देखा, राजमहलों में चलने वाला, वैभव में पलनेवाला,  सुकुमार राजकुमार कांटों, कंकरो भरी राहों पर निकल पड़ा। एक महल छोड़ सारी दुनिया को महल बनाता हुआ। अपने आप को साधने के लिए, अपने आप को पाने के लिए, पूर्ण स्वतंत्र होने के लिए। भगवान महावीर तीर्थंकर थे और एक तीर्थंकर जब दीक्षा लेता है तब उसकी पुण्यवाणी कैसी होती है, उसके बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें हम जानने का प्रयास करते हैं....

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भगवान महावीर की दीक्षा संबंधी कुछ विशेष जानकारियां

Information Regarding Bhagwan Mahaveer Diksha


1) माता पिता के दिवंगत हो जाने पर अपनी गर्भ में की हुई प्रतिज्ञा समाप्त हो जाने पर भगवान ने दीक्षा लेने का निर्णय किया।

2) 1 वर्ष तक दान में प्रतिदिन 1 करोड़ आठ लाख मुद्रा एवं वर्ष में कुल 388 करोड़ 80 लाख मुद्रा का दान दिया।

3) लोकांतिक देव अपने जीताचार वश प्रत्येक तीर्थंकर को दीक्षा के लिए उत्साहित, प्रेरित करते हैं। प्रतिबोधित करने के वचन कहते हैं।

4) वैश्रमण देव धन के भंडार भरते हैं।

5) 64 इंद्र ऋध्दि सहित नगरी में आते हैं। आकाश में भूमि से कुछ ऊंचे विमान को ठहराते हैं।

6) मंडप रचना, स्नान, मालीश आदि अभिषेक क्रिया शकेन्द्र ने की।

7) त्रिपट सिंचित साधित शीतल गोशीर्ष रक्त चंदन का भगवान के शरीर पर लेप किया।

  8) एक लाख सोनिया मुद्रा के मूल्य वाले वस्त्र पहनाया। विविध अलंकारों से भगवान को विभूषित किया। वैक्रिय से इंद्र ने शिविका (पालखी) विविध कलाकृती युक्त बनाई। जिसे उठाने के लिए एक  हजार व्यक्ति खड़े रहते थे।

9) छटृ भक्त की तपस्या में भगवान विशुद्ध परिणामों से उस शिविका पर चढ़े, सिंहासन पर बैठे। शकेन्द्र, इशानेन्द्र दोनों बाजू में चामर झूला रहे थे। शिविका पहले मनुष्य ने उठाई फिर देवों ने शिविका का वहन किया। हजारों देव जुलूस में आकाश में चल रहे थे। विविध वाजिंत्रो से आकाश गुंजायमान हो रहा था। देवता भी विविध वाजिंत्र वादन और सैकड़ों नाटक दिखाते जा रहे थे।

10) नगर के बाहर उद्यान में दीक्षा स्थल था। वहां पहुंचकर भगवान ने अलंकार वस्तुओं का त्याग किया। फिर केश लोच किया। आभूषण वैश्रमन देव ने स्वच्छ वस्त्र में लिए और केशो को शकेन्द्र ने व्रजमय थाल में ग्रहण कर क्षीरोद समुद्र में संहरित कर दिए। विसर्जित कर दिए।

11) भगवान सिध्दों को नमस्कार करके संपूर्ण सावद्य योग  त्याग एवं संयम ग्रहण की प्रतिज्ञा का उच्चारण किया। उस समय सारा वातावरण और वाजिंत्रो की आवाज को शकेंद्र की आज्ञा से परिपूर्ण शांत कर दिया गया। सभी ने ध्यानपूर्वक प्रतिज्ञा के पाठ का उच्चारण शांति के साथ सुना।

12) प्रतिज्ञा उच्चारण के अंदर ही भगवान को मनपर्याय ज्ञान उत्पन्न हुआ। सभी पारिवारिक जनों एवं समस्त परिषद को विसर्जित किया। आज की भाषा में मांगलिक पाठ सुनाया।

भगवान महावीर का जीवन जब हम देखते हैं तो हमारे जीवन में नवचेतना का संचार होता हैं। भगवान महावीर का जीवन विशाल था, अद्भुत था। राजपाट, पारिवारिक सुख-सुविधा होने के बाद भी किस तरह उन्होंने इसका त्याग कर अष्ट कर्मों को खपाया। उनके जीवन से हमें असीम प्रेरणा मिलती है। आशा है, भगवान महावीर के दीक्षा संबंधी  यह शेयर की हुई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। जय जिनेन्द्र!


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