लघु जैन कहानी " महत्व कष्ट का नही, शुद्धि का" Jain Hindi Stori ''Mahatwa Kasht ka nahi, Shuddhi ka"

November 24, 2017
महत्व कष्ट का नहीं,  शुद्धि का... यह कहानी  बहुत छोटी है लेकिन  इसमें बहुत ही गहरा अर्थ छुपा है । इस कहानी के सच्चे भाव अगर ध्यान में आ जाए तो हमारे इस संसार सागर की नाव ही बदल जाए। भगवान महावीर ने बहुत ही कम शब्दों में  धर्म और अधर्म में क्या अंतर है,. इसकी परिभाषा हमें बताई हैं।

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लघु जैन कहानी " महत्व कष्ट का नही, शुद्धि का"

Jain Hindi Stori ''Mahatwa Kasht ka nahi, Shuddhi ka"


                एक बार गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से पूछा- 'भंते! क्या शरीर को कष्ट देना धर्म हैं?'
      ' नहीं कह सकता कि वह धर्म हैं'
       'भंते! तो क्या वह अधर्म है ?'
       'नही कह सकता कि वह अधर्म हैं।'
        'तो क्या है, भंते ?'
        'रोगी कड़वी दवा पी रहा है। क्या मैं कहूं कि वह अनिष्ठ कर रहा है? ज्वर से पीड़ित मनुष्य स्निग्ध- मधुर भोजन खा रहा है? क्या मैं कहूं वह इष्ट कर रहा है?'
       'दवा रोग की चिकित्सा है। मीठी दवा लेने से रोग न मीटे तो कड़वी दवाई भी लेनी होती है।'
       ' स्निग्ध भोजन शरीर को पुष्ट करता है, पर ज्वर में वह शरीर को क्षीण करता है।'
        'मैं शरीर को कष्ट देने को धर्म नहीं कहता हूं ।मैं संस्कारों की शुद्धि को धर्म करता हूँ।'

कहानी की सीख:-

                परमपिता भगवान महावीर ने हमें यही सीख दी है की हर कार्य शुद्धता के साथ, शुध्द भाव के साथ करना चाहिए।ताकि हम हमारे मोक्ष के उद्देश्य को जल्द ही प्राप्त कर सके।

महत्त्व कष्ट का नहीं, शुद्धि का.... यह कहानी आप किसी स्पीच या व्याख्यान कही पर भी बोल सकते है। बच्चो को भी इस कहानी के भाव समझाए।


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1 comment

  1. very inspiring jain hindi story mahatwa kasht ka nahi, shudhi ka...

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